तृतीयोऽध्यायः

गुः श्त्रीः ॥ ३.१ ॥

गौ स्त्री ॥ ३.२ ॥

मो नारी ॥ ३.३ ॥

रो मृगी ॥ ३.४ ॥

म्गौ चेत्कन्या ॥ ३.५ ॥

म्गौ गिति पङ्क्तिः ॥ ३.६ ॥

त्यौ स्तस्तनुमध्या ॥ ३.७ ॥

शशिवदना न्यौ ॥ ३.८ ॥

विद्युल्लेखा मो मः ॥ ३.९ ॥

त्सा चेद्वसुमती ॥ ३.१० ॥

म्सौ गः स्यान्मदलेखाः ॥ ३.११ ॥

भौ गिति चित्रपदा गः ॥ ३.१२ ॥

मो मो गो गो विद्युन्माला ॥ ३.१३ ॥

माणवकं भात्तलगा ॥ ३.१४ ॥

म्नौ गौ हंसरुतमेतत् ॥ ३.१५ ॥

र्जौ समानिका गलौ च ॥ ३.१६ ॥

प्रमाणिका जरौ लगौ ॥ ३.१७ ॥

वितानमाभ्यां यदन्यत् ॥ ३.१८ ॥

राम्नसाविह हलमुखी ॥ ३.१९ ॥

भुजगशिशुभृतां नौ मः ॥ ३.२० ॥

म्सा ज्गौ शुद्धविराडिदं मतम् ॥ ३.२१ ॥

म्नौ ज्गौ चेति पणवनामकम् ॥ ३.२२ ॥

र्जौ रगौ मयूरसारिणी स्यात् ॥ ३.२३ ॥

भ्मौ सगयुक्तौ रुक्मवतीयम् ॥ ३.२४ ॥

मत्ता ज्ञेया मभसगयुक्ता ॥ ३.२५ ॥

नरजगौर्भवेन्मनोरमा ॥ ३.२६ ॥

त्जौ जो गुरुणेयमुपस्थिता ॥ ३.२७ ॥

स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः ॥ ३.२८ ॥

उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ ॥ ३.२९ ॥

पादौ यदीयावुपजातयस्ताः ॥ ३.३० ॥

स्मरन्ति जातिष्विदमेव नाम मे ॥ ३.३१ ॥

नजजलगैर्गदिता सुमुखी ॥ ३.३२ ॥

दोधकवृत्तमिदं भभभाद्गौ ॥ ३.३३ ॥

शालिन्युक्ता म्तौ तगौ गोऽब्धिलोकैः ॥ ३.३४ ॥

वातोर्मीयं कथिता म्भौ तगौ गः ॥ ३.३५ ॥

वाणरसैः स्याद्भतनगगैः श्रीः ॥ ३.३६ ॥

म्भौ न्लौ गः स्याद्भ्रमरविलसितम् ॥ ३.३७ ॥

रान्नराविह रथोद्धता लगौ ॥ ३.३८ ॥

स्वागतेति रनभाद्गुरुयुग्मम् ॥ ३.३९ ॥

ननरलगुरुरचिता वृन्ता ॥ ३.४० ॥

ननरमगुरुभिश्च भद्रिका ॥ ३.४१ ॥

श्येनिका रजौ रलौ गुरुर्पदा ॥ ३.४२ ॥

मौक्तिकमाला यदि भतनाद्गौ ॥ ३.४३ ॥

उपस्थितमिदं ज्सौ ताद्गकारौ ॥ ३.४४ ॥

चन्द्रवर्त्म निगदन्ति रनभसैः ॥ ३.४५ ॥

जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ ॥ ३.४६ ॥

स्यादिन्द्रवंशा ततजै रसंयुतैः ॥ ३.४७ ॥

इह तोटकमम्बुधिसैः प्रथितम् ॥ ३.४८ ॥

द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ ॥ ३.४९ ॥

मिनुशरविरतिर्नौ म्यौ पुटोऽयम् ॥ ३.५० ॥

प्रमुदितवदना भवेन्नौ च रौ ॥ ३.५१ ॥

नयसहितौ न्यौ कुसुमवचित्रा ॥ ३.५२ ॥

रसैर्जसजसा जलोद्धतगतिः ॥ ३.५३ ॥

चतुर्जगणं वद मौक्तिकदाम ॥ ३.५४ ॥

भुजङ्गप्रयातं भवेद्यैश्चतुभिः ॥ ३.५५ ॥

रैश्चतुर्भिर्युता स्रग्विणी सम्मता ॥ ३.५६ ॥

भुवि भवेन्नभजरैः प्रियंवदा ॥ ३.५७ ॥

त्यौ त्यौ मणिमाला च्छिन्ना गुहवक्त्रैः ॥ ३.५८ ॥

धीरैरभाणि ललिता तभौजरौ ॥ ३.५९ ॥

प्रमिताक्षरा सजससैरुदिता ॥ ३.६० ॥

ननभरसहिता महितोज्ज्वला ॥ ३.६१ ॥

पञ्चाश्वैश्छिन्ना वैश्यदेवी ममौ यौ ॥ ३.६२ ॥

अब्ध्यष्टाभिर्जलधरमाला म्भौ स्मौ ॥ ३.६३ ॥

इह नवमालिका नजभयैः स्यात् ॥ ३.६४ ॥

स्वरशरविरतिर्ननौ रौ प्रभा ॥ ३.६५ ॥

भवति नजावथ मालती जरौ ॥ ३.६६ ॥

जभौ जरौ वदति पञ्चामरम् ॥ ३.६७ ॥

अभिनवतामरसं नजजाद्यः ॥ ३.६८ ॥

तुरगरसयतिर्नौ ततौ गः क्षमा ॥ ३.६९ ॥

म्नौ ज्रौ गस्त्रिदशयतिः प्रहर्षिणीअम् ॥ ३.७० ॥

चतुर्ग्रहैरतिरुचिरा जभस्जगाः ॥ ३.७१ ॥

वेदै रन्ध्रैर्म्तौ यसगा मत्तमयूरम् ॥ ३.७२ ॥

( उपस्थितमिदं ज्सौ त्सौ सगुरुकं चेत्) ॥ ३.७३ ॥

सजसा जगौ भवति मञ्जुभाषिणी ॥ ३.७४ ॥

ननततगुरुभिश्चन्द्रिकाश्वर्तुभिः ॥ ३.७५ ॥

म्तौ न्सौ गावक्षग्रहविरतिसम्बाधा ॥ ३.७६ ॥

ननरसलघुगैः स्वरैरपराजिता ॥ ३.७७ ॥

ननभनलघुगैः प्रहरणकलिता ॥ ३.७८ ॥

उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः ॥ ३.७९ ॥

सिंहोन्नतेयमुदिता मुनिकाश्यपेन ॥ ३.८० ॥

उद्धर्षिणीयमुदिता मुनिसैतवेन ॥ ३.८१ ॥

इन्दुवदना भजसनैः सगुरुयुग्मैः ॥ ३.८२ ॥

द्विःसप्तच्छिदलोला म्सौ म्भौ गौ चरणे चेत् ॥ ३.८३ ॥

द्विहतहयलघुरथ गिति शशिकला ॥ ३.८४ ॥

स्रगिति भवति रसनवकयतिरियम् ॥ ३.८५ ॥

वसुहययतिरिह मणिगुणनिकरः ॥ ३.८६ ॥

ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः ॥ ३.८७ ॥

भवति नजौ भजौ रसहितौ प्रभद्रकम् ॥ ३.८८ ॥

सजना नयौ शरदशयतिरियमेला ॥ ३.८९ ॥

म्रौ म्यौ यान्तौ भवेतां सप्ताष्टभिश्चन्द्रलेखा ॥ ३.९० ॥

भ्रत्रिनगैः स्वरात्खमृषभगजविलसितम् ॥ ३.९१ ॥

नजभजरैः सदा भवति वाणिनी गयुक्तैः ॥ ३.९२ ॥

रसै रुद्रैश्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी ॥ ३.९३ ॥

जसौ जसयला वसुग्रहयतिश्च पृथ्वी गुरुः ॥ ३.९४ ॥

दिङ्मुनि वंशपत्रपतितं भरनभनलगैः ॥ ३.९५ ॥

रसयुगहयैर्न्सौ म्रौ स्लौ गौ यदा हरिणी तदा ॥ ३.९६ ॥

मन्दाक्रान्ता जलधिषडगैर्म्भौनतौ ताद्गुरु चेत् ॥ ३.९७ ॥

हयदशभिर्नजौ भजजला गुरु नर्कुटकम् ॥ ३.९८ ॥

मुनिगुहकार्ंवैः कृतयति वद कोकिलकम् ॥ ३.९९ ॥

स्याद्भूतर्त्वश्वैः कुसुमितलतावेल्लिता म्तौ नयौ यौ ॥ ३.१०० ॥

सूर्याश्वैर्मसजस्तताः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् ॥ ३.१०१ ॥

ज्ञेया सप्ताश्वषड्भ्र्मरभनययुता भ्लो गः सुवदना ॥ ३.१०२ ॥

त्री रजौ गलौ भवेदिहेदृशेन लक्षणेन वृत्तनाम ॥ ३.१०३ ॥

म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम् ॥ ३.१०४ ॥

भ्रौ नरना रनावथ गुरुर्दिगर्कविरमं हि भद्रकमिति ॥ ३.१०५ ॥

यदिह नजौ भजौ भ्जभलगास्तदश्वललितं हरार्कयतिमम् ॥ ३.१०६ ॥

मताक्रीडा मौ त्नौ नौ नल्गिति भवति वसुशरदशयतियुता ॥ ३.१०७ ॥

भूतमुनिनैर्यतिरिह भतनाः स्भौ भनयाश्च यदि भवति तन्वी ॥ ३.१०८ ॥

क्रौञ्जपदा भमौ स्मौ ननना न्गाविषशरवसुमुनिविरतिरिह भवेत् ॥ ३.१०९ ॥

वस्वीशाश्वच्छेदोपेतं ममतनयुगनरसलगैर्भुजङ्गविजृम्भितम् ॥ ३.११० ॥

मो नाः षट्सगगिति यदि नवरसरसशरयतियुतमपवाहाख्यम् ॥ ३.१११ ॥

यदि ह नयुगलं ततः सप्तरेफा स्तदा चण्डवृष्टिप्रपातो भवेद्दण्डकः ॥ ३.११२ ॥

प्रतिचरणविवृद्धरेफाः स्युर्णार्णवव्यालजीमूतलीलाकरोद्दामशङ्खादयः ॥ ३.११३ ॥

प्रचितकसमभिधो धीरधीभिः स्मृतोदण्डको नद्वयादुत्तरैः सप्तभिर्यैः ॥ ३.११४ ॥