सामान्य ज्ञान हरियाणा-संस्कृति
हरियाणा सरकार की नौकरियों में अब लिखित परीक्षा भी होगी| जिसमें हरियाणा के इतिहास, राजनीति, साहित्य और संस्कृति के बारे में पूछा जाएगा| यदि यह परीक्षा राजस्थान की तर्ज पर हुई तो नीचे दी गई जानकारी उपयोगी होगी|
बरही/नेजू- कुएं से पानी खींचने की मोटी रस्सी|
दोघड- सिर पर ऊपर नीचे एक साथ दो घड़े|
पनिहारन-कुएं से पानी लाने वाली|
पनघट- वह सार्वजानिक कुआं जहाँ से पीने का पानी लाया जाता था|
सूड़- खेत में हल चलाने से पहले की जाने वाली कटाई-छंटाई|
न्याणा- गाय का दूध निकालने के पूर्व उसके पिछले पैरों को बांधने का रस्सा|
नेता- हाथ से दूध बिलोने की रई को घुमाने वाला रस्सा|
नांगला- रई को सीधी रखने के लिए डाले जाने वाले दो रस्से |
कढावणी- हारे में दूध गर्म करने का मटका|
बिलोवना/बिलोवनी- दूध बिलोने के लिए प्रयोग होने वाला मटका| घीलडी- घी डालने का मिटटी का पात्र | जमावनी- दूध जमाने का मटका |
जामण- दूध ज़माने के लिए डाली जाने वाली छाछ |
रई- दूध बिलोने का लकड़ी का यन्त्र|
हारी- कपडे या घास से बना गोल घेरा जिस पर गर्म बर्तन रखा जाता था|
हारा- गोबर के कंडे (उपले) जलाकर कुछ पकाने का स्थान |
बांठ/ चाट- पकाकर पशुओं को डाली जानी वाली खाद्य सामग्री, जैसे बिनोले, ग्वार, चने आदि|
गोस्से/उपले/पाथिये- गोबर के कंडे|
कोठला- अनाज डालने का मिटटी का बड़ा पात्र|
कोठली- अनाज डालने का मिटटी का छोटा पात्र
कूप/ बूंगा- चारा डालने का सरकंडों/ घासफूस से बना ढांचा|
मन्जोली- मुज़ की गठरी| मूंज- सरकंडों में से निकला गया वह हिस्सा जिससे रस्सी बनती है|
मोगरी- मूंज. फसल आदि को कूटने की मोटी लकड़ी|
खाट- चारपाई|
प्लाण- गाडी में जोतने से पहले ऊंट की पीठ पर रखा जाने वाला एक लकड़ी का ढांचा |
कजावा- ऊंट की पीठ पर रखकर सामान धोने का एक साधन, जिसे प्लाण पर रखा जाता था|
राछ- औजार |
कूंची- ऊंट की सवारी करने के लिए उसके ऊपर रखा जाने वाला एक ढांचा|
बींड- ऊंट को हल में जोतने के लिए प्रयोग होने वाला रस्सों का जाल |
जुआ/जूडा- ऊंट अथवा बैल को हल में जोतने के लिए प्रयोग होने वाला लकड़ी का ढांचा|
कुस/फाल- हल में प्रयोग होने वाला लोहे का उपकरण |
ओरना- बिजाई के काम आने वाला बांस से बना एक उपकरण |
बिजंडी- बीज डालने का थैला या अन्य पात्र|
हलसोतिया- बिजाई शुरू करने के दिन का उत्सव||
हाली- हल चलाने वाला| पंजवाल- खेत में पानी देने वाला|
पाली- पशु चराने वाला|
चीड़स- चमड़े का एक पात्र जिससे कुएं से पानी निकाला जाता था|
पूली- फसल की कटाई से समय कुछ मात्र के एक साथ बांधे गए पौधे |
दुबका- ऊंट या किसी अन्य पशु के पैरों को बांधना ताकि वह भाग न सके|
झावली- मिटटी का एक पात्र, जिसमें सामान डालते थे|
झावला- दूध गर्म करने के मटके (कढ़ावनी) को ढकने का मिटटी का पात्र जिसमें भाप निकलने को छेद होते थे|
मांडना- गेरू या रंगों से दीवारों पर की जाने वाली चित्रकारी|
साथिये- स्वस्तिक आदि |
कुंडा- मिटटी का एक पात्र जिसमें आटा गूंथा जाता था|
कुलडा- मिटटी का मटके जैसा छोटा पात्र, जो पानी लस्सी आदि डालने के काम आता था|
कुलड़ी- कुलडे से छोटे आकर का पात्र|
सिकोरा- मिटटी का एक बर्तन|
बरवा- मिट्टी का एक बर्तन |
सीठना- दामाद को गीत के रूप में दी जाने वाली गालियाँ |
खोड़िया- एक नृत्य |
बटेऊ- दामाद
लनीहार- दुल्हन को लेने आया मेहमान|
बधाण- ऊंट/बैल गाडी, ट्रक्टर ट्राली या ट्रक आदि में लादे गए सामान को बांधने का रस्सा
सांकल- दरवाजे की कुण्डी|
चूरमा- मोटी रोटी का चूरा बनाकर उसमें घी डालकर बनाया गया व्यंजन|
लापसी- आटे को भूनकर उसमें मीठा पानी मिलाकर बनाया गया गाढा व्यंजन|
पांत/सीरा- आटे को भूनकर उसमें मीठा पानी मिलाकर बनाया गया पतला व्यंजन
कसार/पंजीरी - आटे को भूनकर उसमें मीठा मिलकर बनाया गया सूखा पाउडर |
सत्तू- भूने हुए जौ का आटा| बिजणा- हाथ से हवा करने का पंखा| पंखी- हाथ से हवा करने की घूमने वाली पंखी| टोकनी- पीतल का घड़ा|
झाल/मौण- मिटटी का घड़े से बड़े आकार का बर्तन|
सुराही- लम्बी गर्दन और बीच में पानी निकालने के छेड़ युक्त घड़े के आकर का मिटटी का पात्र|
गिर्डी- पत्थर का गोल आकर का एक उपकरण जो गहाई के काम आता है|
रहट- बैलों की मदद से कुएं से पानी निकालने का एक यन्त्र|
धोरा/धाना- खेतों में पानी बहाने का नाला|
सरकंडा/झूंडा/झूंड - एक प्रकार का पौधा जिस के तने और पत्ते छप्पर आदि बनाने काम में लिए जाते हैं|
छाज- सरकंडे के उपरी हिस्से तुलियों से बना एक पात्र जो अनाज साफ़ करने के काम आता है|
छालनी- लोहे से बना एक पात्र जो छानने के काम आता है|
चाकी- पत्थर से बना आटा पीसने का यन्त्र|
कीला- हाथ से चलने वाली चक्की का धुरा जिस पर ऊपरी पाट घूमता है|
मानी- हाथ चक्की के ऊपरी पाट में लगने वाला लकड़ी का टुकड़ा जो कीले पर टिकता है|
गरंड- हाथ चक्की का घेरा जिसमें पिसा हुआ आटा गिरता है|
छिक्का- घी, दूध या रोटी रखने का रस्सी का जाला| पशुओं के मुंह पर लगने वाले जले को भी छिक्का कहते हैं|
रास- ऊंट की लगाम|
हाथेली- हल का वह भाग जिसे पकड़ कर हल चलाया जाता है|
चाक- लकड़ी का बना वह गोल चक्का जिस पर रस्सी चढ़ा कर कुंए से पानी निकाला जाता है|
नोट- मिटटी के मटके आदि बर्तन बनाने का यंत्र भी चाक कहलाता है|
कहोड- ऐसी लकड़ी जो ऊपर दो हिस्सों में बंट जाती है और जिस पर चाक लगाकर कुएं से पानी निकाला जाता है|
ढाणा- कुएं से चीड़स से पानी निकाल कर जिस हौद में डाला जाता है|
खेल- पशुओं के पानी पीने की हौद|
गूण- कुएं से पानी खींचते समय ऊंट या बैल जिस गढ़े में जाते हैं|
मंडासा- कुएं के उपरी हिस्से पर बनायीं गयी दीवार|
बिटोड़ा- गोसे/ उपलों का व्यवस्थित ढेर|
पराली- चावल के पोधों का भूसा|
कड़बी- बाजरे/ज्वार के पोधों का भूसा|
तूड़ी- गेंहूँ/जौ के पोधों का भूसा|
नलाव/नलाई/निनान- फसल में उगी खरपतवार को निकलना|