भौगोलिक स्थिति
उत्तर प्रदेश: भौगोलिक स्थिति SPECIAL FOR UPPCS 2013 उत्तर प्रदेश भारत का सीमांत राज्य है जिसकी उत्तरी सीमा नेपाल को स्पर्श करती है। उत्तराखंड के गठन के पूर्व इसकी सीमाएं चीन के तिब्बत क्षेत्र से भी जुड़ी थी। प्राकृतिक रूप् से उत्तर प्रदेश के उत्तर में हिमालय की शिवालिक श्रेणियां, पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम एवं दक्षिण में यमुना नदी तथा विंध्य श्रेणियां और पूर्व में गंडक नदी है। अवस्थिति भूगर्भिक दृष्टि से उ.प्र. प्राचीनतम गोंडवाना लैंड का भूभाग है। उ.प्र. के दक्षिण भाग में स्थित पठारी भाग प्रायद्वीपीय भाग का ही अंग है जिसका निर्माण विंध्य क्रम की शैलों द्वारा प्री-कैम्ब्रियन युग मंे हुआ है। उ.प्र. के उत्तरी भाग पर स्थित शिवालिक श्रेणी के दक्षिण में गंगा, यमुना व अन्य सहायक नदियों का विस्तृत मैदान है। इसका निर्माण प्लाइस्टोसीन काल में अवसादीकरण से हुआ है। उ.प्र. का अक्षांशीय विस्तार 23डीग्री 52 उत्तर से 30॰24 उत्तरी अक्षांश के मध्य है। कुल अक्षांशीय विस्तार 6॰32 है। उ.प्र. का देशांतरीय विस्तार 7 05 पूर्व से 84 38 पूर्वी देशांतर के मध्य है। प्रदेश का कुल देशांतरीय विस्तार 7 33 है। उ.प्र. की सीमाएं कंेद्र शासित प्रदेश दिल्ली सहित कुल 9 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश से लगी हुई है। उ.प्र. की सीमा को स्पर्श करने वाले राज्य है- हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार एवं उत्तराखंड। उ.प्र. की सीमा को स्पर्श करने वाला एकमात्र केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली है। इसकी सीमाएं उ.प्र. के गाजियाबाद एवं गौतमबुद्ध नगर से लगी हुई हैं। प्रदेश की पूर्वी सीमा बिहार एवं झारखंड से लगी हुई है। प्रदेश की उत्तरी सीमा नेपाल के अतिरिक्त उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश से लगी हुई है। उ.प्र. की पश्चिमी सीमा हरियाणा, राजस्थान तथा केंद्र शासित प्रदेश सीमा मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ को स्पर्श करती है। उ.प्र. की सबसे लंबी सीमा मध्य प्रदेश से स्पर्श करती है। उ.प्र. की न्युनतम सीमा रेखा से स्पर्श करने वाला राज्य हिमाचल प्रदेश है। उ.प्र. का एकमात्र जिला सहारनपुर है जिसकी सीमा हिमाचल प्रदेश से लगती हैै इसके अतिरिक्त इस जिले की सीमा हरियाणा एवं उत्तराखंड से भी लगी है। उ.प्र. के सर्वाधिक जिलों को स्पर्श करने वाला राज्य मध्य प्रदेश है। सर्वाधिक प्रदेशों को स्पर्श करने वाला उ.प्र. का एक मात्र जिला सोनभद्र है। यह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ ,झारखंड एवं बिहार को स्पर्श करता है। उ.प्र. की सीमा को स्पर्श करने वाला एकमात्र विदेशी राष्ट्र नेपाल है। उ.प्र. के कुशीनग, महराजगंज, सिद्धार्थ नगर, बलरामपुर, श्रीवास्तव बहराइच, खीरी एवं पीलीभीत जिलों की सीमा नेपाल को स्पर्श करती है। उ.प्र. का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 2,40,928 वर्ग किमी. है जो भारत के कुल क्षेत्रफल (32,87,263 वर्ग किमी.) के लगभग 7.33प्रतिशत के बराबर है। पूर्व से पश्चिम तक इसकी लंबाई 650 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक चैड़ाई 240 किमी. है। क्षेत्रफल की दृष्टि से उ.प्र. का भारत में पांचवां स्थान है। उ.प्र. से अधिक क्षेत्रफल वाले राज्य है- राजस्थान, मध्य प्रदेश महाराष्ट्र एवं आंध्र प्रदेश। उ.प्र. का वर्तामान भौगोलिक स्वरूप 9 नवंबर,2000 को अस्तित्व में आया है। 9 नवंबर,2000 केा उ.प्र. के 13 पर्वतीय जिलों को काटकर उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया गया है। भौतिक विभाग उत्तराखंड के गठन से पूर्व राज्य के तीन भूभाग थे पर्वतीय क्षेत्र, मेदानी क्षेत्र और दक्षिण का पठारी क्षेत्र। परंतु उत्तराखंड के गठन के बाद पूरा पर्वतीय क्षेत्र, उत्तर प्रदेश से अलग हो गया है और अब इस पर्वतीय क्षेत्र से लगा हुआ भाबर-तराई क्षेत्र ही बचा हुआ है। उ.प्र. को वर्तामान में मुख्यतः तीन प्राकृतिक प्रदेशों में विभाजित किया गया है- (1) भाबर एवं तराई का प्रदेश (2) गंगा यमुना का मैदान एवं (3) दक्षिण पठारी प्रदेश। पश्चिम में सहारनपुर से लेकर पूर्व में देवरिया एवं कुशीनगर (पडरौना ) तक एक पतली सी पट्टी भाबर और तराई कहालाती है। भाबर क्षेत्र वह पर्वतीय भूभाग है जो कंकड़-पत्थरों से निर्मित है। इसका विस्तार उ.प्र. के बिजनौर, सहारनपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर एवं लखीमपुर खीरी जिलों में है। पश्चिम में यह क्षेत्र 34 किमी. चैड़ है परंतु पूर्व की ओर बढ़ने के साथ यह संकरा होता जाता है। तराई क्षेत्र, भाबर के दक्षिण में दलदली एवं गाद मिट्टी वाला क्षेत्र है जो महीन अवसादों से निर्मित है। जंगली और ऊंची घनी घासों से ढका हुआ तराई क्षेत्र कभी 80 से 90 किमी. तक चैड़ा था तथा इसके अंतर्गत सहारनपुर, बिजनौर, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, बहराइच, गोंडा, बस्ती, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर जिलों के भाग आते थे। इधर कुछ वर्षों से भूमि सुधार कार्यों के कारण इसकी चैड़ाई काफी कम हो गई है जिससे इसका काफी भाग उपजाऊ भूमि के रूप में किसानों को प्राप्त हो गया है। अब यहां गन्ना , गेहूं, और धान की फसलों रिकाॅर्ड पैदावार दे रही है। अनेक जगहों पर जूट की भी अच्छी खेती हो रही है। प्रदेश के ऊंचाई वाले भागों में मिलने वाली प्राचीनतम जलोढ़ मिट्टी को राढ़ (त्ंती) के नाम से जाना जाता हे। भाबर और तराई के बाद प्रदेश का पूरा मैदानी क्षेत्र नदियों से लाई गई उपजाऊ मिट्टी से बना है। यमुना पार, आगरा और मथुरा जिलों के उन भूभागों के अतिरिक्त जहां अरावली पहाड़ियों के पूर्वी छोर पर अनेक खार और लाल पत्थरों वाली पहाड़ियां मिलती हैं, समग्र भूभाग समतल है। गंगा -यमुना के विस्तृत मैदानी प्रदेश को तीन उप-विभागों में बांटा गया है- 1 गंगा-यमुना का ऊपरी मैदान 2 गंगा का मध्य मैदानी प्रदेश 3 गंगा का पूर्वी मैदान गंगा-यमुना के ऊपरी मैदान का विस्तार लगभग 500 किमी. लंबी एवं 80 किमी. चैड़ी पट्टी के रूप में विस्तृत है। गंगा-यमुना मे मध्य मैदानी प्रदेश का विस्तार उ.प्र. के सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, अलिगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, मैनपुरी, एटा, बदायूं, मुरादाबाद तथा बरेली जिलों में मिलता है। (नवसृजित 3 जिलों-प्रबुद्ध नगर, पंचशील नगर एवं भीमनगर में थी)। गंगा के पूर्वी मैदान का विस्तार उ.प्र. के वराणसी, जौनपुर एवं संत रविदास नगर में है। गंगा-यमुना के मैदान का निर्माण काॅप मिट्टी से हुआ है। गंगा-यमुना के विस्तृत मैदानी प्रदेश की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 300 मी. है। इस विस्तृत मैदान प्रदेश का निर्माण अभिनूतन एवं अतिनूतन युग में नदी घाटी में अवसादीकरण से हुआ है। इस विस्तृत मैदानी प्रदेश का ढाल पश्चिमांचल में उत्तर से दक्षिण की ओर तथा पूर्वांचल में पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की ओर है । उ.प्र. में दक्षिण पठारी प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 45200 वग्र किमी. है। दक्षिण पठारी प्रदेश के अंतर्गत बुंदेलखंड एवं बंधेलख्ंाड के भू-भाग सम्मिलित है। यह क्षेत्र दक्कन के पठार का ही प्रसरण है तथा इस भूभाग की उत्तरी सीमा यमुना तथा गंगा नदी द्वारा निर्धारित है। इसके अंतर्गत झांसी, जालौन, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, ललितपुर और बांदा जिले, इलाहाबाद जिले की मेजा और करछना तहसीलें, गंगा के दक्षिण में पड़ने वाला मिर्जापुर का हिस्सा तथा चंदोली जिले की चकिया तहसील आती है। इस पठारी क्षेत्र की समान्य ऊंचाई 300 मीटर के आसपास है तथा कुछ स्ािानों पर यह ऊंचाई 450 मीटर से भी अधिक है। मिर्जापुर, सोनभद्र की पहाड़ियां लगभग 600 मीटर तक ऊंची है। बुदेलखंड का निर्माण उ.प्र. के दक्षिणी उच्च प्रदेश में विध्य काल की प्राचीनतम नीस चट्टानांे द्वारा तथा निम्न प्रदेशों में नदियों द्वारा निक्षेपित मिट्टी से हुआ है। कैमूर श्रृंखला बुंदेलखंड से लगी हुई है। इसकी रचना विध्यन शैली से हुई है। बुंदेलखंड में लाल रंग की मृदा का विस्तार पाया जाता है। बुंदेलखंड में प्लास नामक घास बहुतायत में पायी जाती है। बंधेलखंड क्षैत्र की प्रमुख नदी सोन नदी है। बंधेलखंड के उत्तर एवं दक्षिण में क्रमशः सोनपुन एवं रामगढ़ की पहाड़ियां अवस्थित है। दक्षिण पठारी प्रदेश का ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। यहां जल प्रवाह सामान्यतः उत्तर-पूर्व की तरफ है। दक्षिण पठारी प्रदेश की प्रमुख नदियां चंबल, बेतवा, केन , सोन एवं टोंस हैं। कम वर्षा के कारण इस पठारी क्षेत्र में वृक्ष-वनस्पतियां छोटी होती हैं। यहां की मुख्य फसलें ज्वार, तिलहन, चना और गेहूं है। उ.प्र. की जलवायु उत्तर प्रदेश जलवायु की दृष्टि से उष्ण प्रधान शीतोष्ण कटिबंध में आता है। यहां की जलवायु उष्ण कटिबंधीय मानसून प्रकार की है। तराई क्षेत्रों में यह नमी लिए रहती है और दक्षिण पठारी क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु में नमी बिल्कुल नहीं रहती है। उ.प्र. को मुख्यतः दो जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया जाता है- 1 आर्द एवं उष्ण प्रदेश 2 साधारण आर्द्र एवं उष्ण प्रदेश आर्द्र एवं उष्ण प्रदेश को तराई क्षेत्र (120-180सेमी वार्षिक वर्षा) एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश (100-12 सेमी. तक औसत वार्षिक वर्षा) में विभाजित किया जाता है। साधरण आर्द्र एवं उष्ण प्रदेश को मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र (80-100 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा) पश्चिम मैदानी क्षेत्र(पर्वतीय क्षेत्रों के समीप अधिक तथा द.प. भागों में कम) तथा बुंदेलखंड के पठारी व पहाड़ी प्रदेश (वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती हैं) में विभाजित किया जाता है । कोपेन के अनुसार उ.प्र. में जलवायु का शुष्क शीत वाला मानसूनी प्रकार अर्थात ब्ूह मिलता है। थार्नथ्वेट के अनुसार उ.प्र. में ब्ठू अर्थात सम शीतोष्ण उपार्द्र जलवायु का विस्तार मिलता है। उ.प्र. में मुख्यतः तीन ऋतुएं 1. शीत ऋतु 2. ग्रीष्म ऋतु और 3. वर्षा ऋतु होती है। उ.प्र. में शीत ऋतु अक्टूबर से फरवरी तक रहती है। उ.प्र. मंे शीत ऋतु में सर्वाधिक ठंडा महीना जनवरी रहता है। शीत ऋतु में उ.प्र. का तापमान उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ाया जाता है। उ.प्र. के दक्षिण पठारी भाग में शीत ऋतु का औसत अधिकतम तापमान 28.3डीग्री सेलसियस तथा न्यूनतम तापमान 13.3 डीग्री सेलसियस रहता है। उ.प्र. के पश्चिमी मैदानी एवं पर्वतीय भागों का औसत न्यूनतम तापमान 10 डीग्री से. रहता है। उ.प्र. के मध्य मैदानी क्षेत्र में शीत ऋतु का औसत अधिकतम तापमान 27.7 डी.से. होता है। उ.प्र. में शीत ऋतु में वर्षा उत्तर पश्चिम से आने वाले चक्रवातोें के कारण होती है जिनकी औसत संख्या 3-5 के मध्य होती है। शीतकालीन चक्रवातों के द्वारा उ.प्र. के उत्तर पश्चिम क्षेत्रों मे 7-10 सेमी. तक वर्षा की प्राप्ति होती है। पूर्वी भाग के जिलों में शीत ऋतु में वर्षा का औसत 100 से 120 सेमी.के बीच रहता है। उ.प्र. में ग्रीष्म ऋतु का औसत अधिकतम तापमान 36-39 डी.से. तथा न्यूनतम तापमान 21-23 डी.से. होता है। ग्रीष्म ऋतु में कुछ स्ािानों पर तापमान 47डी.से. तक चला जाता है। उ.प्र. के बुंदेलखंड क्षेत्र में सवाधिक औसत तापमान पाया जाता है। इसका कारण इसकी कर्क रेखा से अधिक निकट अवस्थिति का होना हैै। उ.प्र. के झांसी, एवं आगरा जिलों में सबसे अधिक गर्मी पड़ती है। ग्रीष्म ऋतु में उ.प्र. में पश्चिमी हवाएं तीव्र गति से चलती है; इन शुष्क एवं गर्म हवाओं को ’लू’ कहते हैं। उ.प्र. में वर्षा ऋतु जून के अंतिम सत्पाह से प्रारंभ होकर अक्टूबर तक रहती है। उ.प्र. में सर्वाधिक वर्षा जुलाई एवं अगस्त महीनों मंे होती है। वर्षा ऋत ु में बंगाल की खाड़ी से उठने वाला मानसून जैसे ही उ.प्र. में प्रवेश करता है, इसे ’पूर्वा’ कहते हैं। वर्षा ऋतु का औसत अधिकतम तापमान 32-34 डी.से. तथा औसत न्यूनतम तापमान 25डी.से. रहता है। उ.प्र. की अधिकांश मानसूनी वर्षा बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा से प्राप्त होती है इससे उ.प्र. की कुल वर्षा का लगभग 75-80 प्रतिशत भाग प्राप्त होता है। प्रदेश में लगभग 83 प्रतिशत वर्षा जून से सितंबर के बीच और 17 प्रतिशत जाड़ों में होती है। उ.प्र. में अरब सागर मानसून शाखा से नामपत्र की वर्षा ही प्राप्त होती है। इस शाखा की अधिकांश वर्षा प्रदेश के दक्षिण पठारी भाग मंे होती है। उ.प्र. के पूर्वी मैदानी क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 112 सेमी. है। उ.प्र. के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 94 सेमी. है। उ.प्र. के पश्चिम मैदानी क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 84सेमी. है। उ.प्र. के दक्षिण पठारी एवं पहाड़ी भागों की औसत वर्षा 91 सेमी. है। उ.प्र. की संपूर्ण वर्षा का लगभग 60 प्रतिशत जुलाई एवं अगस्त महीनों में प्राप्त होता है। उ.प्र. से मानसून का प्रत्यावर्तन अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से होता है। उ.प्र. क मैदानी क्षेत्र में सर्वाधिक वर्षा गोरखपुर (औसत 184.7 सेमी.) में तथा सबसे कम वर्षा मथुरा (औसत 54.4 सेमी.) में होती है।