लकाराणां संक्षिप्त रूपाणि - परस्मैपदम् ।
धातुरूपाणां दशवर्गाणि सन्ति । तेषां तु रूपं प्रायेण परस्परं भिन्नमेव भवति । किन्तु तथापि अधिका संख्या भ्वादिगणस्यैव अत: तस्यान्तर्गतधातुरूपप्रक्रिया अत्र दीयते । एवं विधा एव प्रायश: सर्वासाम् धातूनां रूपाणि चलन्ति परस्मैपदे ।
लट् लकार:
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | ||
प्रथमपुरुष: | ति | त : | अन्ति | |
मध्यमपुरुष: | सि | थ: | थ | |
उत्तमपुरुष: | मि | व: | म: |
लृट् लकार:
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | स्यति | स्यत: | स्यन्ति |
मध्यमपुरुष: | स्यसि | स्यथ: | स्यथ |
उत्तमपुरुष: | स्यामि | स्याव: | स्याम: |
लड्. लकार:
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | त: | ताम् | अन् |
मध्यमपुरुष: | : | तम् | त |
उत्तमपुरुष: | अम् | व | म |
लोट् लकार:
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | तु | ताम् | अन्तु |
मध्यमपुरुष: | हि | तम् | त |
उत्तमपुरुष: | आनि | आव | आम |
विधिलिड्.
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | ईत् | ईताम् | ईयु: |
मध्यमपुरुष: | ई: | ईतम् | ईत् |
उत्तमपुरुष: | ईयम् | ईव | ईम |
अथवा
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | यात् | याताम् | यु: |
मध्यमपुरुष: | या: | यातम् | यात |
उत्तमपुरुष: | याम् | याव | याम |
आशीर्लिड्.
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | यात् | यास्ताम् | यासु: |
मध्यमपुरुष: | या: | यास्तम् | यास्त |
उत्तमपुरुष: | यासम् | यास्व | यास्म |
लिट् लकार:
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | अ | अतु: | उ: |
मध्यमपुरुष: | (इ) थ | अथु: | अ |
उत्तमपुरुष: | अ | (इ) व | (इ) म |
लुट् लकार:
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | ता | तारौ | तार: |
मध्यमपुरुष: | तासि | तास्थ: | तास्थ |
उत्तमपुरुष: | तास्मि | तास्व: | तास्म: |
लुड्. लकार:
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | त् | ताम् | उ: (अन्) |
मध्यमपुरुष: | : | तम् | त |
उत्तमपुरुष: | अम् | व | म |
लृड्. लकार:
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्रथमपुरुष: | स्यत् | स्याताम् | स्यन् |
मध्यमपुरुष: | स्य: | स्यतम् | स्यत |
उत्तमपुरुष: | स्यम् | स्याव | स्याम |
उपर्युक्ता प्रक्रिया तु केवलं प्रदर्शनार्थमस्ति । वस्तुत: एतदस्मरणे धातुरूपाणां विधि नैवागच्छति । तस्य कृते तु धातूनामस्मरणं पृथक् पृथक् करणीयमेव भवति । अत: कृपया अग्रे दीयमानानां धातूनामेव स्मरणं कुर्वन्तु । एतत् तु पश्यन्तु केवलमेकवारम् ।
इति