शेयर बाजार की पारिभाषिक शब्दावली - डिसगोर्जमेंट

डिसगोर्जमेंट : यह शब्द उच्चारण में काफी भारी भरकम लगता है परंतु इसका अभिप्राय काफी सरल है। कोई भी हस्ती शेयर बाजार या पूंजी बाजार में गैर व्यवहारिक तरीके से घोटाले करके दूसरों की रकम डकार ले तब सेबी ऐसे मामलों की जांच करके इन हस्तियों के पास से गैर व्यवहारिक तरीके से कमाई गयी रकम वसूल करने का अधिकार रखती है। इस उद्देश्य से सेबी डिसगोर्जमेंट ऑर्डर जारी करती है। इस प्रकार की वसूली को डिसगोर्जमेंट कहा जाता है। ताजा उदाहरण के रूप में इस शब्द को समझों तो वर्ष 2003- 2005 के दौरान अनेकों आईपीओ में बेनामी डिमैट एकाउंट खुलवाकर मल्टिपल आवेदन करके अनेक लोगों ने अनुचित लाभ कमाया। चूंकि उस समय बाजार तेजी पर था और आईपीओ में शेयर पाने वाले लोगों को सेकेंडरी बाजार में लिस्टिंग के बाद अच्छा लाभ मिलता था। बेनामी मल्टिपल आवेदनों के कारण छोटे आवेदक आईपीओ में शेयर पाने से वंचित रह गये थे। सेबी ने लंबी जांच के बाद ऐसे अनेक लोगों के पास से उनके द्वारा गैर व्यवहारिक तरीके से कमाई गयी रकम डिसगोर्ज (वसूल) की और अप्रैल के शुरूआत में इस वसूल की गयी रकम को मुआवजे के रूप में उन लोगों में बांटा जो आईपीओ में उक्त शेयर प्राप्त करने से वंचित रह गये थे। भारतीय पूंजी बाजार के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। भारत के वित्त मंत्री के हाथों निवेशकों को मुआवजे के चेक दिये गये। इस प्रकार डिसगोर्जमेंट शब्द जरूर भारी है, लेकिन निवेशकों के लिए लाभदायी एवं राहत भरा है। इस उदाहरण से निवेशकों में सिस्टम तथा बाजार के प्रति विश्वास बढ़ना स्वाभाविक है। सेबी अपने इस अधिकार से उन लोगों पर अंकुश बनाये रख सकती है, जो बाजार में गैर कानूनी और गैर व्यवहारिक तरीके से लाभ कमाना चाहते हैं।