हरियाणा के प्राचीन नगर - पानीपत

इस ऐतिहासिक नगर के नामकरण के बारे में कहा जाता है कि महाभारत की लड़ाई के समय पाण्डवों ने जिन पांच गांव की दुर्योधन से मांग की थी, उनमें से एक पनपथ भी था। बाद में यही पनपथ समय के थपेड़ों की मार सहते हुए पानीपत (Panipat) बन गया।

दिल्ली से 90 किलोमीटर दूर शेरशाह सूरी मार्ग पर बसे इस नगर का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। यहां तीन प्रमुख लड़ाइयां लड़ी गईं, जिन्होने भारतीय इतिहास को नया मोड़ दिया।

पानीपत का प्रथम युद्व 1526 ई. में इबा्रहिम लोदी और बाबर के मध्य हुआ, जिसके परिणामस्वरूर भारत में मुगल सामा्रज्य की नींव पड़ी। पानीपत का द्वितीय युद्व 1556 ई. में अकबर और रिवाड़ी के हेमचन्द्र (हेमू) के मध्य हुआ। जिसके फलस्वरूप मुगल सामा्रज्य की नींव सुदृढ़ हुई। 1761 ई. पानीपत का तीसरा युद्व हुआ जिसमें मराठों की करारी हार ने भारत में ब्रिटिश सामा्रज्य की नींव को सुदृढ़ किया।

यह नगर 31 अक्टूबर, 1989 तक करनाल जिले का भाग था। 1 नवम्बर, 1989 को इसे अलग से जिले का दर्जा दे दिया गया। तब करनाल की असन्ध तहसील भी इसके अन्तर्गत आती थी। 1 जनवरी, 1992 को जिले के पुनर्गठन के दौरान इसमें से असन्ध तहसील निकाल दी गई। औद्योगिक पृष्ठभूमि में निरन्तर विकसित होने वाला यह जिला रोजगार का असीअ भण्डार है। हरियाणा ही नहीं, अपितु सारे भारत के उद्यमी, इंजीनियर, बेरोजगार, कारीगर, कलाकार, शिल्पी और श्रमिक यहाँ रोजगार की तलाश में आते हैं और यही बस जाते हैं।

पानीपत की सीमा तीन ओर से हरियाणा के अन्य जिले से घिरी है, तो पूर्व दिशा में यमुना पार उत्तर प्रदेश के साथ सटी हुई है।