हरियाणा के प्राचीन नगर - कैथल
कैथल शब्द का उल्लेख प्राचीन इतिहास में मिलता है। कैथल को 'कपिस्थल' के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ के पुराने ऐतिहासिक स्थल, धार्मिक स्थन और जगह-जगह सदियों पूर्व बने भवनों के खण्डहर अतीत की महत्वपूर्ण यादें संजोए हुए हैं। इसके विभिन्न हिस्सों में खण्डहरनुमा प्राचीन स्थलों को देखकर पता चलता है कि जिला-मुख्यालय "कैथल" कभी एक समृद्ध नगर रहा होगा।
कैथल 1 नवम्बर, 1989 में हरियाणा के एक जिले के रूप में अस्तित्व में आया इससे पूर्व यह करनाल जिले और फिर कुरूक्षेत्र जिले का उपमण्डल भी रहा।
राज्य के गठन के समय कैथल एक तहसील थी। यह तहसील भी जिला करनाल के अन्तर्गत थी। वर्ष 1973 के प्रारम्भ में जब कुरूक्षेत्र जिले को अलग जिले का दर्जा दिया गया तो यह कैथल क्षेत्र कुरूक्षेत्र में आ गया। इसकी कैथल तहसील के अलावा गुहलाचीका सब-तहसील भी कुरूक्षेत्र में आई। इस प्रकार कैथल जिले में कैथल तथा गुहला तहसीलों के अलावा फतेहपुर-पुण्डरी व कलायत भी उप-तहसीलों के रूप में अस्तित्व में आये।
इस जिले में स्थित कैथल, पुण्डरी, सीवन व कलायत जैसे क्षेत्र इस बात का प्रमाण हैं कि यह भूमि धर्म और संस्कृति की सदाही धनी रही है।
यहाँ पर एक प्राचीन दुर्ग, प्रथम शासिका रजिया बेगम की कब्र व दो प्राचीन दरगाहें प्रसिद्व हैं।
कैथल का इतिहास | History of Kaithal
किवंदिति है कि महाभारत युग के दौरान कैथल की स्थापना राजा युधिष्ठिर ने की थी।
सभी इतिहासकारों को मान्य है कि कैथल को प्राचीनकाल में कपिस्थल के नाम से जाना जाता था। 'कपिस्थल' का अर्थ है 'बंदरों का स्थान'। पहले यहाँ काफी बंदर पाए जाते थे।
हमारे पुराणों में उल्लेख है कि 'हनुमान' का जन्म भी इसी स्थान पर हुआ था। यहाँ पर 'अंजनी का टीला' है, यहीं पर 'हनुमान' का जन्म हुआ बताया जाता है।