अदादिप्रकरणम्
अथादादयः
अद भक्षणे॥ १॥
अदिप्रभृतिभ्यः शपः॥ लसक_५५४ = पा_२,४.७२॥
लुक् स्यात्। अत्ति। अत्तः। अदन्ति। अत्सि। अत्थः। अत्थ। अद्मि। अद्वः। अद्मः।
लिट्यन्यतरस्याम्॥ लसक_५५५ = पा_२,४.४०॥
अदो घसॢ वा स्याल्लिटि। जघास। उपधालोपः॥
शासिवसिघसीनां च॥ लसक_५५६ = पा_८,३.६०॥
इण्कुभ्यां परस्यैषां सस्य षः स्यात्। घस्य चर्त्वम्॥ जक्षतुः। जक्षुः। जघसिथ। जक्षथुः। जक्ष। जघास, जघस। जक्षिव। जक्षिम। आद। आदतुः। आदुः॥
इडत्त्यर्तिव्ययतीनाम्॥ लसक_५५७ = पा_७,२.६६॥
अद् ऋ व्येञ् एभ्यस्थलो नित्यमिट् स्यात्। आदिथ। अत्ता। अत्स्यति। अत्तु। अत्तात्। अत्ताम्। अदन्तु॥
हुझल्भ्यो हेर्धिः॥ लसक_५५८ = पा_६,४.१०१॥
होर्झलन्तेभ्यश्च हेर्धिः स्यात्। अद्धि। अत्तात्। अत्तम्। अत्त। अदानि। अदाव। अदाम॥
अदः सर्वेषाम्॥ लसक_५५९ = पा_७,३.१००॥
अदः परस्यापृक्तसार्वधातुकस्य अट् स्यात्सर्वमतेन। आदत्। आत्ताम्। आदन्। आदः। आत्तम्। आत्त। आदम्। आद्व। आद्म। अद्यात्। अद्याताम्। अद्युः। अद्यात्। अद्यास्ताम्। अद्यासुः॥
लुङ्सनोर्घसॢ॥ लसक_५६० = पा_२,४.३७॥
अदो घसॢ स्याल्लुङि सनि च। ऌदित्वादङ्। अघसत्। आत्स्यत्॥ हन हिंसागत्योः॥ २॥ हन्ति॥
अनुदात्तोपदेशवनतितनोत्यादीनामनुनासिकलोपो झलि क्ङिति॥ लसक_५६१ = पा_६,४.३७॥
अनुनासिकान्तानामेषां वनतेश्च लोपः स्याज्झलादौ किति ङिति परे। यमिरमिनमिगमिहनिमन्यतयो ऽनुदात्तोपदेशाः। तनु क्षणु क्षिणु ऋणु तृणु घृणु वनु मनु तनोत्यादयः। हतः। घ्नन्ति। हंसि। हथः। हथ। हन्मि। हन्वः। हन्मः। जघान। जघ्नतुः। जघ्नुः॥
अभ्यासाच्च॥ लसक_५६२ = पा_७,३.५५॥
अभ्यासात्परस्य हन्तेर्हस्य कुत्वं स्यात्। जघनिथ, जघन्थ। जघ्नथुः। जघ्न। जघ्निव। जघ्निम। हन्ता। हनिष्यति। हन्तु, हतात्। हताम्। घ्नन्तु॥
हन्तेर्जः॥ लसक_५६३ = पा_६,४.३६॥
हौ परे॥
असिद्धवदत्राभात्॥ लसक_५६४ = पा_६,४.२२॥
इत उर्ध्वमापादसमाप्तेराभीयम्, समानाश्रये तस्मिन्कर्तव्ये तदसिद्धम्। इति जस्यासिद्धत्वान्न हेर्लुक्। जहि, हतात्। हतम्। हत। हनानि। हनाव। हनाम। अहन्। अहताम्। अघ्नन्। अहन्। अहतम्। अहत। अहनम्। अहन्व। अहन्म। हन्यात्। हन्याताम्। हन्युः॥
आर्धधातुके॥ लसक_५६५ = पा_२,४.३५॥
इत्यधिकृत्य॥
हनो वध लिङि॥ लसक_५६६ = पा_२,४.४१॥
लुङि च॥ लसक_५६७ = पा_२,४,४३॥
वधादेशो ऽदन्तः। अर्धधातुके इति विषयसप्तमी, तेन आर्धधातुकोपदेशे अकारान्तत्वादतो लोपः। वध्यात्। वध्यास्ताम्। आदेशस्यानेकाच्त्वादेकाच इतीण्निषेधाभावादिट्। ऽतो हलादेः&८२१७॑ इति वृद्धौ प्राप्तायाम् ---- .
अचः परस्मिन् पूर्वविधौ॥ लसक_५६८ = पा_१,१.५७॥
परनिमित्तो ऽजादेशः स्थानिवत्, स्थानिभूतादचः पूर्वत्वेन दृष्टस्य विधौ कर्तव्ये। इत्यल्लोपस्य स्थानिवत्त्वान्न वृद्धिः। अवधीत्। अहनिष्यत्॥ यु मिश्राणामिश्रणयोः॥ ३॥
उतो वृद्धिर्लुकि हलि॥ लसक_५६९ = पा_७,३.८९॥
लुग्विषये उतो वृद्धिः पिति हलादौ सार्वधातुके नत्वभ्यस्तस्य। यौति। युतः। युवन्ति। यौषि। युथः। युथ। यौमि। युवः। युमः। युयाव। यविता। यविष्यति। यौतु, युतात्। अयौत्। अयुताम्। अयुवन्। युयात्। इह उतो वृद्धिर्न, भाष्ये - ऽपिच्च ङिन्न ङिच्च पिन्न&८२१७॑ इति व्याख्यानात्। युयाताम्। युयुः। यूयात्। यूयास्ताम्। यूयासुः। अयावीत्। अयविष्यत्॥ या प्रापणे॥ ४॥ याति। यातः। यान्ति। ययौ। याता। यास्यति। यातु। अयात्। अयाताम्॥
लङः शाकटायनस्यैव॥ लसक_५७० = पा_३,४.१११॥
आदन्तात्परस्य लङो झेर्जुस् वा स्यात्। अयुः, अयान्। यायात्। यायाताम्। यायुः। यायात्। यायास्ताम्। यायासुः। अयासीत्। अयास्यत्। वा गतिगन्धनयोः॥ ५॥ भा दीप्तौ॥ ६॥ ष्णा शौचे॥ ७॥ श्रा पाके॥ ८॥ द्रा कुत्सायां गतौ॥ ९॥ प्सा भक्षणे॥ १०॥ रा दाने॥ ११॥ ला आदाने॥ १२॥ दाप् लवने॥ १३॥ पा रक्षणे॥ १४॥ ख्या प्रकथने॥ १५॥ अयं सार्वधातुके एव प्रयोक्तव्यः॥ विद ज्ञाने॥ १६॥
विदो लटो वा॥ लसक_५७१ = पा_३,४.८३॥
वेत्तेर्लटः परस्मैपदानां णलादयो वा स्युः। वेद। विदतुः। विदुः। वेत्थ। विदथुः। विद। वेद। विद्व। विद्म। पक्षे -- वेत्ति। वित्तः। विदन्ति॥
उषविदजागृभ्यो ऽन्यतरस्याम्॥ लसक_५७२ = पा_३,१.३८॥
एभ्यो लिटि आम्वा स्यात्। विदेरन्तत्वप्रतिज्ञानादामि न गुणः। विदाञ्चकार, विवेद। वेदिता। वेदिष्यति॥
विदाङ्कुर्वन्त्वित्यन्यतरस्याम्॥ लसक_५७३ = पा_३,१.४१॥
वेत्तेर्लोटि आम् गुणाभावो लोटो लुक् लोडन्तकरोत्यनुप्रयोगश्च वा निपात्यते पुरुषवचने न विवक्षिते॥
तनादिकृञ्भ्य उः॥ लसक_५७४ = पा_३,१.७९॥
तनादेः कृञश्च उः प्रत्ययः स्यात्। शपो ऽपवादः। गुणौ। विदाङ्करोतु॥
अत उत्सार्वधातुके॥ लसक_५७५ = पा_६,४.११०॥
उत्प्रत्ययान्तस्य कृञो ऽत उत्सार्वधातुके क्ङिति। विदाङ्कुरुतात्। विदाङ्कुरुताम्। विदाङ्कुर्वन्तु। विदाङ्कुरु। विदाङ्करवाणि। अवेत्। अवित्ताम्। अविदुः॥
दश्च॥ लसक_५७६ = पा_८,२.७५॥
धातोर्दस्य पदान्तस्य सिपि रुर्वा। अवेः, अवेत्। विद्यात्। विद्याताम्। विद्युः। विद्यात्। विद्यास्ताम्। अवेदीत्। अवेदिष्यत्॥ अस् भुवि॥ १७॥ अस्ति॥
श्नसोरल्लोपः॥ लसक_५७७ = पा_६,४.१११॥
श्नस्यास्तेश्चातो लोपः सार्वधातुके क्ङिति। स्तः। सन्ति। असि। स्थः। स्थ। अस्मि। स्वः। स्मः।
उपसर्गप्रादुर्भ्यामस्तिर्यच्परः॥ लसक_५७८ = पा_८,३.८७॥
उपसर्गेणः प्रादुसश्चास्तेः सस्य षो यकारे ऽचि च परे। निष्यात्। प्रनिषन्ति, प्रादुः षन्ति। यच्परः किम् ?। अभिस्तः॥
अस्तेर्भूः॥ लसक_५७९ = पा_२,४.५२॥
आर्धधातुके। बभूव। भविता। भविष्यति। अस्तु, स्तात्। स्ताम्। सन्तु॥
घ्वसोरेद्धावभ्यासलोपश्च॥ लसक_५८० = पा_६,४.११९॥
घोरस्तेश्च एत्त्वं स्याद्धौ परे अभ्यासलोपश्च। एत्त्वस्यासिद्धत्वाद्धेर्धिः। श्नसोरित्यल्लोपः। तातङ्पक्षे एत्त्वं न, परेण तातङा बाधात्। एधि, स्तात्। स्तम्। स्त। असानि। असाव। असाम। आसीत्। आस्ताम्। आसन्। स्यात्। स्याताम्। स्युः। भूयात्। अभूत्। अभविष्यत्॥ इण् गतौ॥ १८॥ एति। इतः॥
इणो यण्॥ लसक_५८१ = पा_६,४.८१॥
अजादौ प्रत्यये परे। यन्ति॥
अभ्यासस्यासवर्णे॥ लसक_५८२ = पा_६,४.७८॥
अभ्यासस्य इवर्णोवर्णयोरियङुवङौ स्तो ऽसवर्णे ऽचि। इयाय॥
दीर्घ इणः किति॥ लसक_५८३ = पा_७,४.६९॥
&न्ब्स्प्॑िणो ऽभ्यासस्य दीर्घः स्यात् किति लिटि। ईयतुः। ईयुः। इययिथ, इयेथ। एता। एष्यति। एतु। ऐत्। ऐताम्। आयन्। इयात्॥
एतेर्लिङि॥ लसक_५८४ = पा_७,४.२४॥
उपसर्गात्परस्य इणो ऽणो ह्रस्व आर्धधातुके किति लिङि। निरियात्। उभयत आश्रयणे नान्तादिवत्। अभीयात्। अणः किम् ? समेयात्॥
इणो गा लुङि॥ लसक_५८५ = पा_२,४.४५॥
गातिस्थेति सिचो लुक्। अगात्। ऐष्यत्॥ शीङ् स्वप्ने॥ १९॥
शीडः सार्वधातुके गुणः॥ लसक_५८६ = पा_७,४.२१॥
क्क्ङिति चेत्यस्यापवादः। शेते। शयाते॥
शीङो रुट्॥ लसक_५८७ = पा_७,१.६॥
शीडः परस्य झादेशस्यातो रुडागमः स्यात्। शेरते। शेषे। शयाथे। शेध्वे। शये। शेवहे। शेमहे। शिश्ये। शिश्याते। शिश्यिरे। शयिता। शयिष्यते। शेताम्। शयाताम्। अशेत। अशयाताम्। अशेरत। शयीत। शयीयाताम्। शयीरन्। शयिषीष्ट। अशयिष्ट। अशयिष्यत॥ इङ् अध्ययने॥ २०॥ इङिकावध्युपसर्गतो न व्यभिचारतः। अधीते। अधीयाते। अधीयते॥
गाङ् लिटि॥ लसक_५८८ = पा_२,४.४९॥
इङो गाङ् स्याल्लिटि। अधिजगे। अधिजगाते। अधिजगिरे। अध्येता। अध्येष्यते। अधीताम्। अधीयाताम्। अधीयताम्। अधीष्व। अधीयाथाम्। अधीध्वम्। अध्ययै। अध्ययावहै। अध्ययामहै। अध्यैत। अध्यैयाताम्। अध्यैयत। अध्यैथाः। अध्यैयाथाम्। अध्यैध्वम्। अध्यैयि। अध्यैवहि। अध्यैमहि। अधीयीत। अधीयीयाताम्। अधीयीरन्। अध्येषीष्ट॥
विभाषा लुङॢङोः॥ लसक_५८९ = पा_२,४.५०॥
इङो गाङ् वा स्यात्॥
गाङ्कुटादिभ्यो ऽञ्णिन्ङित्॥ लसक_५९० = पा_१,२.१॥
गाङादेशात्कृटादिभ्यश्च परे ऽञ्णितः प्रत्यया ङितः स्युः॥
धुमास्थागापाजहातिसां हलि॥ लसक_५९१ = पा_६,४.६६॥
एषामात ईत्स्याद्धलादौ क्ङित्यार्धधातुके। अध्यगीष्ट, अध्यैष्ट। अध्यगीष्यत, अध्यैष्यत॥ दुह प्रपूरणे॥ २१॥ दोग्धि। दुग्धः। दुहन्ति। धोक्षि। दुग्धे। दुहाते। दुहते। धुक्षे। दुहाथे। धुग्ध्वे। दुहे। दुह्वहे। दुह्महे। दुदोह, दुदुहे। दोग्धासि, दोग्धासे। धोक्ष्यति, धोक्ष्यते। दोग्धु, दुग्धात्। दुग्धाम्। दुहन्तु। दुग्धि, दुग्धात्। दुग्धम्। दुग्ध। दोहानि। दोहाव। दोहाम। दुग्धाम्। दुहाताम्। दुहताम्। धुक्ष्व। दुहाथाम्। धुग्घ्वम्। दोहै। दोहावहै। दोहामहै। अधोक्। अदुग्धाम्। अदुहन्। अदोहम्। अदुग्ध। अदुहाताम्। अदुहत। अधुग्ध्वम्। दुह्यात्, दुहीत॥
लिङ्सिचावात्मनेपदेषु॥ लसक_५९२ = पा_१,२.११॥
इक्समीपाद्धलः परौ झलादी लिङ्सिचौ कितौ स्तस्तङि। धुक्षीष्ट॥
शल इगुपधादनिटः क्सः॥ लसक_५९३ = पा_३,१.४५॥
इगुपधो यः शलन्तस्तस्मादनिटश्च्लेः क्सादेशः स्यात्। अधुक्षत्॥
लुग्वा दुहदिहलिहगुहामात्मनेपदे दन्त्ये॥ लसक_५९४ = पा_७,३.७३॥
एषां क्सस्य लुग्वा स्याद्दन्त्ये तङि। अदुग्ध, अधुक्षत॥
क्सस्याचि॥ लसक_५९५ = पा_७,३.७२॥
&न्ब्स्प्॑जादौ तङि क्सस्य लोपः। अधुक्षाताम्। अधुक्षन्त। अदुग्धाः, अधुक्षथाः। अधुक्षाथाम्। अधुग्ध्वम्, अधुक्षध्वम्। अधुक्षि। अदुह्वहि, अधुक्षावहि। अधुक्षामहि। अधोक्ष्यत॥ एवं दिह उपचये॥ २२॥ लिह आस्वादने॥ २३॥ लेढि। लीढः। लिहन्ति। लेक्षि। लीढे। लिहाते। लिहते। लिक्षे। लिहाथे। लीढ्वे। लिलेह, लिलिहे। लेढासि, लेढासे। लेक्ष्यति, लेक्ष्यते। लेढु। लीढाम्। लिहन्तु। लीढि। लेहानि। लीढाम्। अलेट्, अलेड्। अलिक्षत्, अलीढ, अलिक्षत। अलेक्ष्यत्, अलेक्ष्यत॥ ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि॥ २४॥
ब्रुवः पञ्चानामादित आहो ब्रुवः॥ लसक_५९६ = पा_३,४.८४॥
ब्रुवो लटस्तिबादीनां पञ्चानां णलादयः पञ्च वा स्युर्ब्रुवश्चाहादेशः। आह। आहतुः। आहुः॥
आहस्थः॥ लसक_५९७ = पा_८,२.३५॥
झलि परे। चर्त्वम्। आत्थ। आहथुः॥
ब्रुव ईट्॥ लसक_५९८ = पा_७,३.९३॥
ब्रुवः परस्य हलादेः पित ईट् स्यात्। ब्रवीति। ब्रूतः। ब्रुवन्ति। ब्रूते। ब्रुवाते। ब्रुवते॥
ब्रुवो वचिः॥ लसक_५९९ = पा_२,४.५३॥
आर्धधातुके। उवाच। ऊचतुः। ऊचुः। उवचिथ, उवक्थ। ऊचे। वक्तासि, वक्तासे। वक्ष्यति, वक्ष्यते। ब्रवीतु, ब्रूतात्। ब्रुवन्तु। ब्रूहि। ब्रवाणि। ब्रूताम्। ब्रवै। अब्रवीत्, अब्रूत। ब्रूयात्, ब्रुवीत। उच्यात्, वक्षीष्ट॥
अस्यतिवक्तिख्यातिभ्यो ऽङ्॥ लसक_६०० = पा_३,१.५२॥
एभ्यश्चलेरङ् स्यात्॥
वच उम्॥ लसक_६०१ = पा_७,४.२०॥
अङि परे। अवोचत्, अवोचत। अवक्ष्यत्, अवक्ष्यत। (ग. सू.) चर्करीतं च। चर्करीतमिति यङ्लुगन्तस्य संज्ञा, तददादौ बोध्यम्॥ ऊर्णुञ् आच्छादने॥ २५॥
ऊर्णोतेर्विभाषा॥ लसक_६०२ = पा_७,३.९०॥
वा वृद्धिः स्याद्धलादौ पिति सार्वधातुके। ऊर्णौति, ऊर्णोति। ऊर्णुतः। ऊर्णुवन्ति। ऊर्णुते। ऊर्णुवाते। ऊर्णुवते। (ऊर्णोतेराम्नेति वाच्यम्)॥
न न्द्राः संयोगादयः॥ लसक_६०३ = पा_६,१.३॥
अचः पराः संयोगादयो नदरा द्विर्न भवन्ति। नुशब्दस्य द्वित्वम्। ऊर्णुनाव। ऊर्णुनुवतुः। ऊर्णुनुवुः॥
विभाषोर्णोः॥ लसक_६०४ = पा_१,२.३॥
इडादिप्रत्ययो वा ङित्स्यात्। ऊर्णुनुविथ, ऊर्णुनविथ। ऊर्णुविता, ऊर्णविता। ऊर्णुविष्यति, ऊर्णविष्यति। ऊर्णौतु, ऊर्णोतु। ऊर्णवानि। ऊर्णवै॥
गुणो ऽपृक्ते॥ लसक_६०५ = पा_७,३.९१॥
ऊर्णोतेर्गुणो ऽपृक्ते हलादौ पिति सार्वधातुके। वृद्ध्यपवादः। और्णोतु। और्णोः। ऊर्णुयात्। ऊर्णुयाः। ऊर्णुवीत। ऊर्णूयात्। ऊर्णुविषीष्ट, ऊर्णविषीष्ट॥
ऊर्णोतेर्विभाषा॥ लसक_६०६ = पा_७,१.६॥
इडादौ सिचि वा वृद्धिः परस्मैपदे परे। पक्षे गुणः। और्णावीत्, और्णुवीत्, और्णवीत्। और्णाविष्टाम्, और्णुविष्टाम्, और्णविष्टाम्। और्णुविष्ट, और्णविष्ट। और्णुविष्यत्, और्णविष्यत्। और्णुविष्यत, और्णविष्यत॥
इत्यदादयः॥ २॥