जौ की खेती
जौ की खेतीसिंचाई एवं उर्वरकके सीमित साधनएवं असिंचित दशामें गेहूं कीअपेक्षा अधिक लाभप्रदहै, असिंचित उसरीलीतथा बिलम्ब सेबुवाई के स्थानोंपर जौ कीखेती अत्यधिक लाभदायकसिद्ध हुई है, जौ की खपतभारत में मौजूदास्थित या समयमें बहुत कमहै, लेकिन इसकीपैदावार औषधि केरूप में प्रयोगकी जाती है, खास कर जिनलोगों को डायबिटीजहोती है, उनकेलिए ये खानेके लिए बहुतही लाभदायक सिद्धहुई है।
जौ की खेतीके लिए कौनसी उन्नतशील प्रजातियाँहैं, जिन्हें आपकोबोना है?
जौ कीउन्नतशील प्रजातियाँ तीन प्रकारकी पाई जातीहैं, एक तो-
छिलका युक्त: जिसको छीलनेके बाद उसकीरोटी बनाने मेंप्रयोग किया जाताहै, जैसे कि- ज्योति (के-572/10), आजाद (के-125), हरित (के-560), प्रीति, जाग्रति, लखन, मंजुला, नरेन्द्र जी-1 व2 तथा 3, एवं आर.डी. 2552 आदि प्रजातियाँछिलका युक्त हैं, दूसरा आता है-
छिलका रहित: छिलका रहितप्रजातियों में गीतांजली(के-1149), नरेन्द्र जौ 5 एवंउपासना इसी कोहम NDV 934 भी कहतेंहैं, इसके बादतीसरे प्रकार कि
माल्ट हेतु: प्रिगत (के-508), ऋतंभरा (के-551), रेखा, तथाडी.एल.-88, बी.सी.यू.-3, डी.डब्ल्यू.आर.-2 आदि हैं।
उपयुक्त जलवायु
जौ की खेतीके लिए हमेकिस प्रकार कीजलवायु और भूमिचाहिए?
जौ की खेतीके लिए समशीतोष्णजलवायु की आवश्यकताहोती है, इसकीखेती के लिएअनुकूल तापमान बुवाई केसमय 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्तमाना जाता है, इसकी खेती मुख्यतयाअसिंचित स्थानों पर अधिकतरकी जाती है, बलुई दोमट भूमिसर्वोत्तम मानी जातीहै, तथा उसरीलीभूमि में भीइसकी खेती सफलतापूर्वककी जा सकतीहै, लेकिन सिंचित, असंचित, उसरीली एवं हरप्रकार की भूमिमें जौ कीखेती की जासकती है।
जौ किखेती हेतु खेतकि तैयारी किसप्रकार से करनाचाहिए?
खेत कि तैयारीके लिए देशीहल या हैरोद्वारा या कल्टीवेटरसे 2-3 जुताई करके खेतको भुरभुरा करपाटा लगाकर तैयारकरना चाहिए।
बीज बुवाई
जौ कि खेतीहेतु बीज दरप्रति हेक्टर कितनीमात्रा लगती है, और बीज काशोधन हमारे किसानभाई किस प्रकारसे करें?
बीजदर में असिंचितक्षेत्र हेतु 100 किलोग्राम बीजप्रति हेक्टर एवंसिंचित क्षेत्र हेतु 75 किलोग्रामतथा पिछेती बुवाईहेतु 100 किलोग्राम प्रति हेक्टरबीज कि आवश्यकतापड़ती है, बीजशोधन के लिएथिरम या कार्बेंडाजिम50% 2-2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज उपचारितकरतें हैं, बीजंउपचारित करने केबाद ही बुवाईकरनी चाहिए।
जौ कि फसलप्राप्ति हेतु बुवाईका सही समयक्या है, औरकिस विधि सेबुवाई करनी चाहिए?
असिंचित क्षेत्र में 20 अक्टूबरसे 10 नवम्बर तक, सिंचित क्षेत्र हेतु 25 नवम्बरतक तथा देरसे बुवाई हेतुदिसम्बर के दूसरेपखवाड़े तक बुवाईकरनी चाहिए, बुवाईकरने के लिएहल के पीछेलाइनों में 23 सेमी० लाइनसे लाइन किदूरी एवं 5-6 सेंटीमीटरगहराई पर बुवाईकरनी चाहिए, तथासिंचित दशा में7-8 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाईकरनी चाहिए, जिससेकी जमाव अच्छाहो सके।
जल प्रबंधन
जौ किफसल में सिंचाईहमें कब करनीचाहिए, उसका सहीसमय क्या है?
जौ कि सिंचाईतथा गेहूं किसिचाई में थोड़ाअंतर है, पहलीसिंचाई बुवाई के 30-35 दिनबाद कल्ले फूटतेसमय एवं दूसरीगांठें बनते समयकरनी चाहिए, माल्टाप्रजातियों में एकअतिरिक्त सिंचाई कि आवश्यकतापड़ती है ।
पोषण प्रबंधन
जौ कि फ़सलमें किन उर्वरकोंका प्रयोग हमेंकरना चाहिए, औरकितनी मात्रा मेंकरना चाहिए?
उर्वरकों का प्रयोगमृदा परिक्षण केआधार पर करनाचाहिए, असिंचित क्षेत्रों में40 किलोग्राम नत्रजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस, 10 किलोग्राम पोटाश तत्व केरूप में बुवाईके समय कुंडोंमें बीज केनिचे डालना चाहिए, सिंचित क्षेत्र हेतु 60 किलोग्राम नत्रजन, 30 किलोग्रामफास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश, नत्रजनकी आधी मात्राएवं पोटाश कीपूरी मात्रा बुवाईके समय कुंडोंमें बीज केनीचे तथा सभीनत्रजन की मात्रासिंचाई के बादकल्ले फूटते समयप्रयोग करें, माल्टा प्रजातियोंके लिए 25% अधिकनत्रजन की आवश्यकतापड़ती है, उसरएवं देर सेबुवाई हेतु 30 किलोग्रामनत्रजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस, बुवाईके समय कुंडोंमें तथा 30 किलोग्रामनत्रजन टापड्रेसिंग के रूपमें पहली सिंचाईके बाद करनाचाहिए।
खरपतवार प्रबंधन
जौ किफसल में लगनेवाले खरपतवारों कानियंत्रण और उनकीरोकथाम किस तरहकरें?
जौ कि फसलमें रबी केखरपतवार सभी उगतेंहै, इनका नियंत्रणनिम्न प्रकार सेकरना चाहिए, सबसेपहले निराई गुड़ाईकरके तथा रसायनोंका भी प्रयोगकरके करना चाहिए, पेंडामेथेलीन 30 ईसी की3.3 लीटर मात्रा 800-1000 लीटर पानीमें मिलकर फ़्लैटफैननोजिल से प्रतिहेक्टर छिडकाव बुवाई केएक दो दिनबाद तक करनाचाहिए, जिससे की खरपतवारउग ही नसकें, दूसरा खड़ीफसल में चौडीपत्ती वाले खरपतवारोंका नियंत्रण हेतु2,4,डी, सोडियम साल्ट 80% डब्लू.पी. कीमात्रा 625 ग्राम, 600-800 लीटर पानीमें मिलाकर बुवाईके 30-35 दिन बादप्रति हेक्टर फ़्लैटफैननोजिल से छिडकावकरना चाहिए, तीसरेप्रकार का जहाँचौण्डी एवं संकरीपत्ती वाले खरपतवारहों वहां परसल्फोसल्फ्युरान 75% 32 मिलीलीटर प्रति हेक्टरइसके साथ हीमैटसल्फुरान मिथाइल 5 ग्राम डब्लू.जी. 40 ग्राम प्रतिहेक्टर बुवाई के 30-35 दिनबाद छिडकाव करनाचाहिए, इस तरहसे हम खरपतवारोंका नियंत्रण सफलतापूर्वककर सकतें हैं।
रोग प्रबंधन
जौ कीफसल में कौनकौन से रोगलगने की सम्भावनारहती है औरउनकी रोकथाम हमारेकिसान भाई किसप्रकार करे?
सबसे पहले हमदेखते है,
आवृत कंडुवा रोग: यहबालियों के दानोके स्थान परफफूंदी का कालाचूर्ण विषाणु बनजाता है, जोएक मजबूत झिल्लीसे ढके रहतेहै और मड़ाईपर वह झिल्लीफट जाती है, तथा वह कालाचूर्ण स्वस्थ दानोमें भी चिपकजाता है।
अनावृत कडुवा रोग: यहभी बालियों केस्थान पर कालाचूर्ण बन जाताहै, जो पकनेपर झिल्ली द्वाराढका रहता हैऔर पकने परझिल्ली फट जातीहै और हवामें उड़कर पूरेखेत या पूरीफसल में फैलजाता है इनकीरोकथाम के लिएप्रमाणित बीज बोनेके साथ साथबीज शोधन करना अति आवश्यकहै जैसा कीवुवाई से पहलेबताया गया है, इसमें तीसरा आताहै-
पत्ती काधरीदार रोग: पत्तियोंकी नसों परहरापन समाप्त होजाता है औरपीली धारियां बनजाती है जिसपर फफूंद केअसंख्य जीवाणु बनते है, चौथी है-
जौ के धबेदारतथा जालिकावृत धब्बारोग : पत्तियोंपर अंडाकार धब्बेबनते है जोबाद में पूरीपत्ती पर फैलकरआपस में मिलकर धारियां बनालेते है जलीवृतधब्बे में जालियांप्रमुख्यता दिखती है, पाचवाहै-
गेरुई तथा रतुआरोग: यह भूरेपीले एवं कालेरंग की होतीहै, काली गेरुईपत्ती एवं तनादोनों पर हीलगते है, इनसब की रोकथामके लिए मैन्कोजेब2.0 किलोग्राम या जिनेब2.5 किलोग्राम का छिडकावप्रति हेक्टर कीदर से करनाचाहिए अथवा प्रोपिकोनजाल25% ई.सी. को1/2 लीटर 1000 लीटर पानीमें मिलाकर प्रतिहेक्टर की दरसे छिडकाव करनाचाहिए।
अब हम बातकर लेने हैउन कीटों कीजो हमारी जौकी फसल मेंलग जाते हैऔर उनकी रोकथामहम किस प्रकारकरे?
जौ की खड़ेफसल में चूहेअत्याधिक नुकसान पहुचाते है, इसके साथ साथदीमक, माहू, सैनिककीट तथा गुलाबीताना बेधक भीजौ की फसलको नुकसान करतेहै इनकी रोकथामके लिए दीमकप्रकोपित क्षेत्र में नीमकी खली 10 कुंतलप्रति हेक्टर कीदर से खेतकी तैयारी करतेसमय प्रयोग करतेहुए, पिछली फसलके अवशेष पूर्णरूपेणनष्ट कर देनाचाहिए, दूसरा है चूहोंकी रोकथाम केलिए जिंक फास्फाइटअथवा बेरियम कार्बोनेटके बने नशीलेचारे का प्रयोगकरना चाहिए, एकभाग दवा एकभाग सरसों कातेल तथा 48 भागदाना मिलकर चाराबनाया जाता है, अन्य सभी कीटोंकी रोकथाम हेतूक्यूनालफास 25 ई.सी. की 1.5-2.0 लीटर मात्रा700 से 800 लीटर पानीमें मिलकर प्रतिहेक्टर छिडकाव करना चाहिएया साईंपर्मेथ्रिन 750 मिलीलीटर या फेनवेलरेटएक लीटर 700 से800 लीटर पानी मेंमिलकर प्रति हेक्टरछिडकाव करना चाहिए।
फसल कटाई
जौ की फसलमें कटाई कासही समय क्याहै,और कब,कैसे करनीचाहिए उसकी कटाई?
जौ की कटाईफसल पकने परसुबह या शामको करें, इसकेतुरंत बाद मड़ाईकरके अनाज काभण्डारण कर देनाचाहिए।
जौ की पैदावारमिलने के बादउसका भण्डारण कहाँपर करना चाहिए, तथा किस प्रकार करनाचाहिए ?
भण्डारण करना अतिआवश्यक है। क्योंकिजौ की फसलमें भण्डारण परभी बहुत सेकीट लगतें हैं, मौसम का बिनाइंतजार किये हुएउपज को बाखारीएवं बोरों मेंभर कर साफसुथरे एवं सूखेस्थान पर नीमकी पत्ती बिछाकररखना चाहिए यारसायनों का प्रयोगकरना चाहिए ।
जौ की उपजप्रति हैक्टर कितनीमात्रा में प्राप्तहो जाती है?
जैसे की छिलकायुक्तजो प्रजातियाँ बताईंथीं। उनमे 30-35 कुंतलप्रति हैक्टर मिलतीहै, और छिलकारहित प्रजातियों में25-30 कुंतल प्रति हैक्टर तथामाल्ट हेतु जोप्रजातियाँ हैं। उनमे40-45 कुंतल प्रति हैक्टर उपजप्राप्त होती है।